सार्वजनिक रूप से स्तनपान और देश

 दरअसल हमारा समाज पितृसत्ता के अलिखित नियामकों द्वारा शासित और संचालित होता है। अगर पुरुष स्त्री को निरा भोग की निगाह से देख रहा हैतो उसमें कोई गलत बात नहीं नज़र आतीपर यदि महिला अपने जायज़ अधिकार और इच्छा का प्रदर्शन करती हैतो पुरुष समाज और उनकी संस्कृति पर गाज़ गिर जाती है। हालांकि स्तनपान को लेकर एक तरफ सरकारें जागरूकता के कार्यक्रमों और विज्ञापनों के माध्यम से भी इसे बढ़ावा देने का दिखावा तो करती हैपर वास्तव में स्तनपान पर लोगों की मानसिकता में बदलाव लाने अथवा कानून बनाकर निजी अथवा सार्वजनिक रूप से स्तनपान को अधिकार का दर्जा नहीं दिला पाई है।

स्तनपान और तथ्य

कुछ तथ्य जो सरकार के विज्ञापनों से जुटाए जा सकते हैंजैसे माँ का दूध बच्चों के लिए सर्वोत्तम आहार हैस्तनपान किये जाने वाले बच्चों की स्तनपान नहीं किये जाने वाले बच्चों की तुलना में बीमार पड़ने की सम्भावना कम होती है। माँ के दूध में एक तत्व कोलेस्ट्रोम पाया जाता हैजो बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और तंदुरुस्त बनाता है। कोलेस्ट्रम युक्त दूध कई प्रकार से बच्चे के विकास और निरोग होने में मदद करता है। इस तरह के कई स्लोगन और विज्ञापन प्रखण्ड के भवनों आदि में लिखे देखे जा सकते हैं।

समाज स्तनपान के खिलाफ नहीं

सैद्धांतिक रूप से हमारा समाज स्तनपान के खिलाफ नहीं हैबल्कि उसको डर है स्तन के दिख जाने से। इससे पुरुष सत्ता को शर्म लग जाती है। एक महिला जो ट्रेन के सामान्य डब्बे में सफ़र कर रही होती है और बच्चा भूख से रोने लगता है। ऐसे मौके पर महिला द्वारा स्तनपान कराने की दुविधाबच्चे की रोने की आवाज़ और स्तन को घूरती बेशर्म आंखेंकभी न कभी लोगों ने ज़रूर देखी होगी। ऐसे में बच्चे की भूख को शांत करने हेतु स्तनपान कराना अश्लील है या माँ द्वारा बच्चे को स्तनपान कराते घूरती आंखे अश्लील हैंइसपर सोचने की ज़रूरत है।

पुरुषवादी मानसिकता

ऐसे ही बेहुदे सवाल और विवाद तब भी होते हैंजब एक स्त्री स्कर्ट में सड़क पर जाती है और कुछ पुरुषों द्वारा उसका बलात्कार कर दिया जाता है। तब सवाल यह नहीं होता कि किसने और क्यों ऐसी आपराधिक घटना को अंजाम दियाबल्कि बात स्त्री पर ही डाली जाती है कि आखिर स्कर्ट पहनने की ज़रूरत ही क्या हैशाम को अकेली घूमने की ज़रूरत ही क्या हैमानो स्त्री इंसान न हुई बंद कमरों में रखी जाने वाली दोयम दर्जे की वस्तु हो। पर ऐसे उदाहरण जिसमें छोटी-छोटी उम्र की बच्चियोंवृद्धा महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएंयह जाहिर करती हैं कि समस्या स्त्री के पहनावेघूमने या आचार-व्यवहार में नहीं हैबल्कि पुरुषवादी मानसिकता में है। हम सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान करने को लेकर भी इससे तुलना करके वस्तु-स्थिति को समझ सकते हैं कि समस्या कहां है।

द लांसेट’ में छपी स्तनपान करने पर एक रपट के अनुसारविश्व में पांच वर्ष से कम उम्र के अनुमानित 8 लाख 23 हज़ार बच्चों की मौतें हर साल स्तनपान कराने से रोकी जा सकती हैं।

इसपर हमारी बहस होनी चाहिएपर बहस का केंद्र माँ को कैसेकब और कहां स्तनपान कराना है वह है। यह मानसिकता दरअसल खतरनाक लक्षण है पितृसत्ता कीजिसमें कई और लक्षण है। यह लक्षण मानसिकता और सत्ता दोनों से ही संबंधित है।

सार्वजनिक रूप से स्तनपान को टैबू से मुक्त करने और बच्चे के पोषण के प्रति जागरूकता के लिए ही सलमा हायेक द्वारा सियरा लीओन में एक बच्चे को दूध पिलाने का बोल्ड सीन किया गयाजिसपर भी दुनियाभर में चर्चाएं चली थी।

सार्वजनिक रूप से स्तनपान और देश

अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कई देशों में सार्वजनिक रूप से स्तनपान कराना आम बात है। हालांकि यह महिला की अपनी सुविधास्वतंत्रता और बच्चे की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए उस माँ की स्वतंत्र अभिव्यक्ति है। इसपर पुरुष समाज को चिंतित होने की कोई ज़रूरत नहीं है।

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